थी जो मेरी महफ़िल की
रौनक, उन्हें गैरों के लिए सजते देखा है ||
ओ जो देख के हमें, यूँ
ही चुप-चाप गुजर जाती है |
अपनी आँखों में, उनकी निगाहों को झांकते देखा है ||
खुद से भी ज्यादा जो
मुझको प्यारा है, उनको दुश्मन सा जलते देखा है |
मौज-मस्ती व एहसास–ए-मोहब्बत,
यादों का कारवां सा बिखरते देखा है ||
सोने की चिड़िया
कहलाने वाले भारत में भी, भूखा-नंगा देखा है |
सभ्यता संस्कृति में
विश्वगुरु भारत को, इंडिया में बदलते देखा है ||
भ्रष्ट नेता-पुलिस-मिडिया
छोड़ो, दो बोतल की खातिर जनता को बिकते देखा है |
सीता-राधा-दुर्गा-काली
की धरती पर भी, हर रोज नारी की आबरू लुटते देखा है ||