Monday, August 22, 2011

NAGARJUN HAMARI NAJARON MEN (नागार्जुन हमारी नजरों में -समीक्षा ):

प्रिय पाठक मित्र ,
अपने  देश में  इस बार जोर -शोर से  साहित्यकारों की  जन्मशती मनाई जा रही है | इसलिए मुझे अपने संस्थान की वार्षिक  पत्रिका  ' सम्मुख ' के लिए नागार्जुन जी पर समीक्षा लिखने को कहा गया | इस सम्बंधित आप अपनी राय बताएं |
नागार्जुन जी बीसवीं सदी के उन विरल विद्वानों में हैं जो सम्पूर्ण भारतीय मनीषा का प्रतिनिधित्व करते हैं| हिंदी और मैथिली में लिखने वाले विद्यानाथ मिश्र का जन्म जून 1911 को बिहार राज्य के दरभंगा जिला स्थित तरौनी ग्राम में हुआ था| जो संस्कृत,पाली, प्राकृत भाषाओं के भी अध्धयन करते हुए उच्च शिक्षा के लिए वाराणसी आकर हिंदी के प्रसिद्द लेखकों कवियों के संपर्क में आये| वैसे तो वे मैथिली में 'यात्री' के नाम से लिखना शुरू किये परन्तु 1930 में उन्होंने सहारनपुर(यू.पी.) में शिक्षक के रूप में कार्यरत रहकर हिंदी में भी लिखना शुरू कर दिए| फिर भटकते-भटकते प्रसिद्ध हिंदी लेखक के संपर्क में आकर बौद्ध धर्म से जुड़े और 1935 में श्रीलंका के मठ में जाकर (sculpture ) शिलालेख का अध्धयन किया फिर वे नागार्जुन के नाम से लिखना शुरू किये| फिर कृष्ण सभा के संस्थापक स्वामी सहजानंद सरस्वती से प्रभावित होकर 1939 - 1942 में कृषक आन्दोलन में शरीक हुए| बिहार में कृषकों के नेता होने के कारण जेल भी गए| जयप्रकाश आन्दोलन (1975 - 1977) में आपातकालीन स्थिति में सहयोग हेतु ११ महीनों के लिए जेल गए| 1930 - 40 के दौरान उन्होंने भारत भ्रमण दर्शन किये और दिल्ली के एक गाँव में अपना छोटा सा घर बनाए और वहाँ के टैगोर पार्क में सुप्रसिद्ध हिंदी युवा के रूप में विख्यात हुए| वे संस्कृत बाँगला भाषाओँ में भी लिखा करते थे |

उनकी दो हिंदी कविता 1945 में ' सपथ ',1952 में ' चना जोर गरम ' साथ ही 1948 में 28 मथिली ' कविता संग्रह ' खूब लोकप्रिय हुआ | इस प्रकार अपने भारत दर्शन के अनुभव को उन्होंने कविता के रूप में कलात्मक ढंग से व्यक्त किया जिसमे उन्होंने भारतीय का आम जीवन को आलोकित किया है


सुप्रसिद्ध लोकप्रिय कविता " बादल को घिरते देखा है " जो निराला के कविता लेखन शैली की तरह है वे प्रायः वर्तमान भारतीय सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियों को ओर हाथों लेकर लिखा करते थे| ' मंत्र ' कविता कुछ इस तरह ही है जो उस समय के सभी पीढ़ी  पर सटीक निशाना है| ब्रिटिश शासन व्यवस्था ,कराहती आत्मीयता के देखते हुए रानी एलिजाबेथ की तरफ संकेत करते हुए " आओ रानी हम ढोएंगे पालकी " लिखे | वे शोषित गुलाम जनों के बीच आजादी के लिए आन्दोलन हेतु अपनी कविताओं के माध्यम से उनके रंगों में क्रांति का संचार कर दिए| उन्होंने कविता को आम जीवन की सड़कों पर बिछा दिया |


कूकू आजादी का चिन्ह है, उस पर नागार्जुन जी ने कविता लिख कर ब्रिटिश शासन को ललकारा था ..

" जले ठूंठ पर बैठकर गयी कोकिला कूक बाल बाँका कर सकी शासन की बन्दूक "

उन्होंने अपने सबसे लोकप्रिय कविता " आकाल और उसके बाद " में मानव की चर्चा किये बगैर, जानवरों की दुर्दशा की कल्पना को उजागर कर ' भूख और बाद में आनंद ' के भाव को शालीन अंदाज़ में समेटा है| जिसके मनुष्य की हालत उस समय कैसी रही होगी इसका रेखाचित्र मस्तिष्क पर आसानी से खिंच जाती है |


कई दिनों तक चूल्हा रोया , चक्की रही उदास कई दिनों तक कानी कुतिया सोयी उनके पास कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त दाने आये घर के अन्दर कई दिनों के बाद धुंआ उठा आँगन से कई दिनों के बाद चमक उठी घर की आँखे कई दिनों के बाद कौए ने खुजलाई पंखें कई दिनों के बाद 


इन आठ पंक्तियों में ही उन्होंने आकाल और उसके बाद की स्थिति को कलात्मक ढ़ंग से पिरो दिया है| जिसको समझना और अनुभव करना बहुत ही सहज है|प्रेमचंद की पद्धतियों पर आधारित उन्होंने 13 उपन्यास लिखे जिसमें 11 हिंदी में और 2 मैथिली में थे | जो गाँवों में शोचित स्त्रियों बच्चों की दुर्दशा को आलोकित करता है| 1969 में उनकी रचित ऐतिहासिक पुस्तक " पत्रहीन नग्न गुच्छ " के लिए "साहित्य अकादेमी पुरस्कार " से पुरस्कृत किया गया | यूपी सरकार द्वारा 1983 में साहित्य में सराहनीय योगदान के लिए " भारत भारती पुरस्कार " दिया गया | फिर वे "साहित्य अकादेमी पुरस्कार " से सम्मानित किये गए और 1944 में उन्हें "लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड " से नवाज़ा गया |नागार्जुन जी का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों ही विशद हैं और परस्पर गुथे हुए जैसे सागर | सागर को चुल्लू में नहीं भरा जा सकता
|
 
 प्रस्तुति
  चन्द्रशेखर प्रसाद

No comments: