चूस रहे हैं धरती का रस जो ,है गुलाब मतवाला |
भ्रमर -भ्रमर बैठे पराग पर ,कांटे लगते माला ||
अमराई अंगराई भारती ,जीवन है मधुशाला |
किरण –किरण की धुन जागी है,गुलशन लागे आला ||
सौरभ वन उपबन मैं विहँसे ,चुटकी दै - दै बाला |
मानव तेरे जीवन में भी,मृगतृष्णा है हाला ||
काटों का क्या मोल बाएँ ,मंजिल पा ले दामन |
थिरक –थिरक वह दूर जा रहा ,क्रंदन वन का नंदन ||
सम्मोहित मन चंचलता में ,निर्मित करता माया |
सुन्दरतम जगती गुलाब का ,सुरभित , सुस्मित काया ||
कौतुक नियति पसारे जग में,सच कह दूँ में यारा |
फूल -फूल हैं , काटें -कांटे ,जग जीते में हरा ||
मानवता पहचानो मानव ,बांटे सौरभ जस गुलाब |
प्रेम जगत सार तत्व है,दर्दे दिल की है पुकार ||
चन्द्रशेखर प्रसाद
1 comment:
NICE POEM !!!
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